अम्बानी ने Pre - Wedding क्या इज़्ज़त बचाने के लिए करी ?
"तनावग्रस्त व्यक्ति के लिए प्रेम करना कठिन हो सकता है क्योंकि तनाव और चिंता मानसिक स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं, स्वार्थपरता व्यक्ति को अपने स्वार्थों में डूबा सकती है, और संतुष्टि की कमी प्रेम के अनुभव को असमर्थ कर सकती है।"
तुम अपने जीवन में कुछ पाने के लिए धन कमाते हो वह एक साधन है। तुम मकान बनाते हो किसी उद्देश्य से उसमें रहने के लिए बनाते हो, यह एक साधन है। लेकिन प्रेम एक साधन नहीं है, तुम प्रेम क्यों करते हो, किसलिए करते हो, किससे करते हो ? प्रेम अपने आप में ही एक साधना है। इसीलिए बुद्धि जो बहुत तर्कवान है जो हमेशा उपयोगिता की भाषा में सोचती है प्रेम नहीं कर सकती। और जो बुद्धि हमेशा किसी उपयोगिता किसी उद्देश्य की भाषा में ही सोचती है वह सदा तनावपूर्ण रहती है। क्योंकि उद्देश्य की पूर्ति भविष्य में होगी अभी और यहां कभी नहीं होती।
तुम मकान बनाते हो, तुम अभी और इसी समय उसमें नहीं रह सकते। पहले तुम्हें उसे बनाना पड़ेगा तुम भविष्य में ही उसमें रह पाओगे, अभी नहीं। तुम धन कमाते हो, बैंक में धन राशि भविष्य में जमा होगी अभी नहीं। उपाय तुम्हें अभी करने होंगे, फल भविष्य में आएंगे।
प्रेम हमेशा यहीं है। उसका कोई अंत नहीं। इसीलिए प्रेम साधना के अति निकट है। इसीलिए मृत्यु भी साधना के बहुत निकट है; क्योंकि मृत्यु अभी और आज ही है। वह कभी भविष्य में नहीं घटती। क्या तुम भविष्य में मर सकते हो? केवल वर्तमान में ही मृत्यु को प्राप्त कर सकते हो। कोई कभी भविष्य में नहीं मरता। तुम भविष्य में कैसे मर सकते हो या तुम अतीत में कैसे मर सकते हो? अतीत जा चुका, वह अब है ही नहीं इसलिए तुम उसमें मर नहीं सकते। भविष्य अभी आया नहीं, इसलिए तुम उसमें कैसे मर सकते हो? मृत्यु हमेशा वर्तमान में घटती है। मृत्यु, प्रेम, साधना ये सभी वर्तमान में ही घटित होते हैं। इसलिए अगर तुम मौत से भयभीत हो तो तुम प्रेम नहीं कर सकते। अगर तुम प्रेम से भयभीत हो तो तुम साधना नहीं कर सकते। अगर तुम साधना से भयभीत हो तो प्रेम नही कर सकते |
अगर तनाव से भरा व्यक्ति प्रेम नहीं कर सकता है, तो इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। यह निम्नलिखित कारणों का परिणाम हो सकता है:
तनाव और चिंता: तनाव और चिंता की स्थिति में व्यक्ति के मन में अस्थिरता होती है और वह प्रेम के लिए उचित मानसिक और भावनात्मक स्थिति में नहीं होता है। तनाव व्यक्ति को अपने भावों और संबंधों को सही तरीके से व्यक्त करने में बाधा डाल सकता है।
स्वार्थपरता: तनावग्रस्त व्यक्ति अक्सर स्वयं को अपने स्वार्थों, लाभ की प्राथमिकता और उद्देश्यों में डूबा हुआ पाता है। इस प्रकार की मानसिकता में, व्यक्ति को दूसरों के साथ आपसी संबंधों के लिए समर्पित होने में कठिनाई होती है और इससे प्रेम का अनुभव विकसित करने में असमर्थ हो सकता है।
स्वाभाविक संतुष्टि की कमी: तनाव में रहने वाले व्यक्ति की अंतर्दृष्टि पर असामान्य दबाव होता है, जो प्रेम को विकसित करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में, व्यक्ति आनंद और संतुष्टि को नहीं अनुभव कर पाता है और प्रेम के आनंद को अपने जीवन में स्थायी रूप से स्थापित नहीं कर पाता है।
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