अम्बानी ने Pre - Wedding क्या इज़्ज़त बचाने के लिए करी ?
![]() |
| Osho |
मन स्थिर होता ही नहीं।
वस्तुतः अस्थिरता, चंचलता का नाम ही मन है। इसलिए मन या तो होता है,
या नहीं होता है। मन या अमन--
बस ऐसी ही दो स्थितियां हैं।
मन से सत्य, संसार की भांति दिखता है।
संसार अर्थात चंचलता के द्वार से देखा गया ब्रह्म; और अमन से जो है,
वह वैसा ही दिखता है, जैसा है।
सत्य जैसा है, उसे वैसा ही जानना ब्रह्म है!
इसलिए मन को स्थिर करने की बात ही न पूछें। मन को स्थिर नहीं करना है,
बल्कि मिटाना है।
शांत तूफान जैसी कोई चीज देखी-सुनी है?
ऐसे ही शांत मन जैसी कोई चीज नहीं है
मन अशांति का ही पर्याय है!
और तब उपाय का तो सवाल ही नहीं उठता है। सब उपाय मन के ही हैं।
मन मिटाना है तो उपाय में नहीं,
निरुपाय में जाना पड़ता है।
उपाय करने से मन घटता नहीं, बढ़ता है--क्योंकि उपाय वही तो करता है।
और, मन ही जो करता है,
उससे मन कैसे मिट सकता है?
फिर क्या करें? नहीं! करें कुछ भी नहीं।
बस जागें, देखें सारी बातें। मन को ही देखें। मन के प्रति होशपूर्ण हों।
और फिर धीरे-धीरे मन गलत है,
पिघलता है, मिटता है।
साक्षी-भाव सूर्योदय की भांति मन की ओस को वाष्पीभूत कर देता है।
चाहें तो कहें कि यही उपाय है!
Comments
Post a Comment